सूरदास के पद |Surdas Ke Pad bhawarth vyakhya | Surdas Ke Pad | सूरदास के पद : सूरदास | Surdas | Surdas Ke Pad | Hindi Class 11 notes | WBCHSE

ऊधौ मन नहिं हाथ हमारै।
रथ चढ़ाइ हरि संग गए लै,
मथुरा जबहिं सिधारे।।
नातरु कहा जोग हम छाँड़हि अति रुचि कै तुम ल्याए।
हम तौ झँखति स्याम की करनी, मन लै जोग पठाए।।
अजहूँ मन अपनौ हम पावै, तुम तै होइ तो होइ।
‘सूर’ सपथ हमैं कोटि तिहारी, कही करैगी सोइ।।
रथ चढ़ाइ हरि संग गए लै,
मथुरा जबहिं सिधारे।।
नातरु कहा जोग हम छाँड़हि अति रुचि कै तुम ल्याए।
हम तौ झँखति स्याम की करनी, मन लै जोग पठाए।।
अजहूँ मन अपनौ हम पावै, तुम तै होइ तो होइ।
‘सूर’ सपथ हमैं कोटि तिहारी, कही करैगी सोइ।।
संदर्भ:
प्रस्तुत पद कृष्ण भक्तिधारा के सर्वश्रेष्ठ कवि, वात्सल्य सम्राट ‘सूरदास’ जी द्वारा रचित ‘भ्रमर गीत’ से अवतरित है। यह हमारी पाठ्य पुस्तिका ‘हिन्दी पाठ-संचयन’ में संकलित है।
प्रसंग:
प्रस्तुत पद में गोपियों के निरंकार ब्रम्ह के स्वीकार करने में असमर्थता का वर्णन किया गयाहै। गोपियां अपने मन की दशा को बता कर उद्धव जी को निरूत्तर कर देती है।
व्याख्या:
सूरदास जी लिखते हैं कि जब उद्धव जी गोपियों के पास निरंकार ब्रह्म को स्वीकार करने का प्रस्ताव लेकर जाते हैं तब गोपियाँ अपनी असमर्थता उनके सामने रखती हैं। वे कहती है कि हे उद्धव हमारा मन हमारे हाथ में नहीं है। हमारे मन को तो भगवान श्री कृष्ण अपने साथ रथ पर चढ़ा कर ले गए जब वे हमें छोड़कर मथुरा जा रहे थे। हमारा मन ही जब हमारे पास नहीं है तो हम आपका यह प्रस्ताव कैसे स्वीकार करें? अन्यथा आपके द्वारा अति रुचिपूर्वक लाए गए योग को हम त्याग नहीं करते। गोपियाँ दु:ख व्यक्त करते हुए कहती हैं कि हमें तो भगवान श्रीकृष्ण की करनी पर बड़ा दुख हो रहा है कि हमारा मन तो वह अपने साथ ले गए और उसके बदले में जोग भेज दिए। यदि अभी भी हमारा मन हमें प्राप्त हो जाए तो आपके द्वारा लाए गए जोग को अपना लेंगी। सूरदास जी लिखते हैं कि गोपियां उद्धव से कहती है कि हम आपकी करोड़ों कसमें खाकर कहती हैं कि यदि आप हमारा मन लौटा देंगे तो जो आप कहेंगे, वही हम करेंगे।
काव्य सौंदर्य/विशेष:
1. प्रस्तुत पद में गोपियों का भगवान श्री कृष्ण के प्रति गहन प्रेम देखने को मिलता है।
2. गोपियां अपने तर्कों से उद्धव को निरुत्तर कर देती है और योग के प्रति अपनी असमर्थता को व्यक्त करती है।
3. यह ब्रज भाषा में रचित है।
4. इस पद में वियोग श्रृंगार रस का वर्णन है।
5. इस पद में माधुर्य गुण है।
6. इसमें अनुप्रास अलंकार का प्रयोग हुआ है।
मधुबन तुम क्यौं रहत हरे |
बिरह बियोग स्याम सुंदर के ठाढ़े क्यौं न जरे ||
मोहन बेनु बनावत तुम तर, साखा टेकि खरे |
मोहे थावर अरु जड़ जंगम, मनि जन ध्यान टरे ||
वह चितवनि तू मन न धरत है, फिरि फिरि पुहुप धरे |
सूरदास प्रभु बिरह दवानल, नख सिख लौं न जरे ||
संदर्भ:
प्रस्तुत पद कृष्ण भक्तिधारा के सर्वश्रेष्ठ कवि, वात्सल्य सम्राट ‘सूरदास’ जी द्वारा रचित ‘भ्रमर गीत’ से अवतरित है। यह हमारी पाठ्य पुस्तिका ‘हिन्दी पाठ-संचयन’ में संकलित है।
प्रसंग:
इस पद में श्रीकृष्ण से अलग होने के बाद गोपियों के विरह वेदना से व्यथित मनोदशा का चित्रण किया गया है। मधुबन को हरा-भरा देखकर दुखी ब्रज बालाएँ उसे कोसती है कि उसे खड़े-खड़े जल जाना चाहिए।
व्याख्या:
महाकवि सूरदास जी लिखते हैं कि ब्रज की सभी गोपियां अपने प्रियतम श्री कृष्ण के वियोग से बहुत दुखी है। यह कृष्ण दीवानी गोपियाँ मधुबन को संबोधित करते हुए कहती है कि अरे मधुबन! तुम प्रियतम कृष्ण की अनुपस्थिति में भी इतने हरे-भरे कैसे रह सकते हो? जिस पल हमारे श्यामसुंदर तुम्हें छोड़ कर चले गए उसी पल तुम्हें जलकर राख हो जाना चाहिए था। गोपियाँ मधुबन को धिक्काराते हुए कहती हैं कि तुम्हें वह दिन याद नहीं जब श्रीकृष्ण तुम्हारी छाया में अपनी सुरीली बांसुरी बजाया करते थे और तुम्हारी डाली का सहारा लेकर खड़े हुआ करते थे। तुम कैसे भूल सकते हो वह पल जब कृष्ण की मधुर बांसुरी सुनकर सभी जीव जंतु, यहां तक कि इस धरती का कण-कण मोहित हो जाता था। ऋषि मुनियों की भी तपस्या भंग हो जाती थी। गोपियाँ मधुबन को ताना देते हुए कहती है कि क्या तुम्हें कृष्ण की उस मधुर चितवन का भी ख्याल नहीं है कि तू बार-बार ने फूल पत्ते धारण कर ले रहे हो? तुम्हें तो भगवान श्री कृष्ण के विरह की आग में सिर से पैर तक जलकर खाक हो जाना चाहिए, लेकिन तुम तो हरे-भरे हो।
काव्य सौंदर्य/ विशेष:
1. प्रस्तुत पद में गोपियों का अपने प्रियतम भगवान श्री कृष्ण के प्रति प्रगाढ़ प्रेम व्यक्त हुआ है।
2. प्रस्तुत पद में गोपियों का कृष्ण से बिछड़ने के बाद उनके विरह वेदना की झलक देखने को मिलती है।
3. मधुबन के मानवीकरण से गोपियों के प्रेम की तीव्रता का आभास होता है।
4. गोपियों के विछोह से व्यथित मानसिक दशा अत्यंत मार्मिक चित्र अंकित हुआ है।
5. यह ब्रज भाषा में रचित है।
6. इस पद में वियोग श्रृंगार रस का अवलोकन होता है।
7. मधुबन को ताना देना गोपियों की अनन्य कृष्ण भक्ति का प्रतीक है।
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2 Comments
Thank you for this
ReplyDeleteThank you so much for this...😊
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