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सूरदास के पद का भावार्थ या व्याख्या | Surdas Ke Pad ka bhawarth vyakhya | Surdas | सूरदास | WBCHSE Class 11 Hindi Notes

सूरदास के पद |Surdas Ke Pad bhawarth vyakhya | Surdas Ke Pad | सूरदास के पद : सूरदास | Surdas | Surdas Ke Pad | Hindi Class 11 notes | WBCHSE 


SURDASH KE PAD DESCRIPTIVE TYPE QUESTIONS
मैया मोहिं दाऊ बहुत खिझायो।  
मो सों कहत मोल को लीन्हों तू जसुमति कब जायो॥  
कहा करौं इहि रिस के मारें खेलन हौं नहिं जात।  
पुनि पुनि कहत कौन है माता को है तेरो तात॥  
गोरे नंद जसोदा गोरी तू कत स्यामल गात।  
चुटकी दै दै ग्वाल नचावत हंसत सबै मुसुकात॥  
तू मोहीं को मारन सीखी दाउहिं कबहुं न खीझै।  
मोहन मुख रिस की ये बातैं जसुमति सुनि सुनि रीझै॥  
सुनहु कान बलभद्र चबाई जनमत ही को धूत।  
सूर स्याम मोहिं गोधन की सौं हौं माता तू पूत ||

संदर्भ: 

प्रस्तुत पद कृष्ण भक्तिधारा के अन्यतम कवि, वात्सल्य सम्राट ‘सूरदास’ जी द्वारा रचित ‘वात्सल्य के पद’ से अवतरित है। यह हमारी पाठ्य पुस्तिका ‘हिन्दी पाठ-संचयन’  में संकलित है।  


प्रसंग

प्रस्तुत पद में सूरदास जी ने श्री कृष्ण की बाल लीला का बड़ा हीं सुंदर और मनोरम चित्र प्रस्तुत किया है। बालक श्री कृष्ण माता यशोदा से अपने बड़े भाई बलराम की शिकायत करते हैं। जब बलराम और अन्य ग्वाल-बाल उन्हे उनके साँवले रूप को लेकर चिढ़ाते हैं, तो वे माता यशोदा से उनकी शिकायत करते हैं। 


व्याख्या

बालक श्री कृष्ण अपनी माँ यशोदा से शिकायत करते हैं कि हे मैया! मुझे बलराम भैया बहुत चिढ़ाते हैं। वे मुझसे कहते हैं कि तुम्हें माता यशोदा ने जन्म नहीं दिया है, तुम तो खरीद कर लाये गए हो। मैं इसी क्रोध के कारण खेलने भी नहीं जाता हूँ। वे बार-बार मुझसे पूछते हैं कि मेरे माता-पिता कौन हैं? नन्द बाबा और यशोदा मैया दोनों हीं गोरे हैं, फिर तुम साँवले क्यों हो? सभी ग्वाल-बाल चुटकी बजा-बजा कर मुझपे हँसते हैं और मुसकुराते हैं। श्रीकृष्ण चिढ़कर कर कहते हैं कि तुम तो केवल मुझे हीं मारना सीखी हो, बलराम भैया पर तो कभी क्रोध भी नहीं करती हो। बालक कृष्ण के मुख से ये क्रोधपूर्ण बातें सुन कर माता यशोदा मन हीं मन बहुत प्रसन्न होती हैं। वे स्नेहपूर्वक कृष्ण से कहती हैं कि बलराम तो जन्म से हीं चुगलखोर और धूर्त है। मैं गोधन की सौगंध खा कर कहती हूँ कि मैं हीं तुम्हारी माँ हूँ और तुम हीं मेरे प्रिय पुत्र हो। कृष्ण के प्रति माता यशोदा का यह वात्सल्य देखते हीं बनता है। 


काव्य सौंदर्य/विशेष: 

1. प्रस्तुत पद में श्री कृष्ण के बाल स्वभाव का सजीव चित्रण है।  

2. प्रस्तुत पद से यह ज्ञात होता है कि सूरदास जी बाल-मनोवृत्ति के कुशल पारखी हैं।  

3. इस पद में माता यशोदा के वात्सल्य से भरे हृदय की अनुपम छवि देखने को मिलती है।  

4. बालकों के मुख से निकली क्रोधपूर्ण बातें भी हर माँ को आनंददायक लगती हैं।  

5. इसमें सौन्दर्य भाव और माधुर्य गुण है।  

6. यह ब्रज भाषा में रचित है।


मैया! मैं नहिं माखन खायो। 

ख्याल परै ये सखा सबै मिलि मेरैं मुख लपटायो॥ 

देखि तुही छींके पर भाजन ऊंचे धरि लटकायो। 

हौं जु कहत नान्हें कर अपने मैं कैसें करि पायो॥ 

मुख दधि पोंछि बुद्धि इक कीन्हीं दोना पीठि दुरायो। 

डारि सांटि मुसुकाइ जशोदा स्यामहिं कंठ लगायो॥ 

बाल बिनोद मोद मन मोह्यो भक्ति प्राप दिखायो। 

सूरदास जसुमति को यह सुख सिव बिरंचि नहिं पायो॥


संदर्भ: 

प्रस्तुत पद कृष्ण भक्तिधारा के अन्यतम कवि, वात्सल्य सम्राट ‘सूरदास’ जी द्वारा रचित ‘वात्सल्य के पद’ से अवतरित है। यह हमारी पाठ्य पुस्तिका ‘हिन्दी पाठ-संचयन’  में संकलित है।  


प्रसंग

प्रस्तुत पद में बालक श्री कृष्ण के नटखट और चंचल सरुप का चित्रण प्रस्तुत हुआ है। कृष्ण माखन चोरी करते पकडे जाते हैं और बड़ी ही चतुराई से अपने आप को निर्दोष साबित करने की कोशिश करते हैं।

व्याख्या

बालक श्री कृष्ण मक्खन चुराकर खाते समय गोपियो द्वारा रंगे हाथ पकड़ लिए जाते हैं और जब उन्हें माता यशोदा के पास ले जाए जाता है तो वह अपनी सफाई देते हुए कहते हैं कि हे मैया! मैंने माखन नहीं खाया है। मैं तो बिल्कुल निर्दोष हूँ, सारे ग्वाल-बाल मुझसे जलते हैं, इसलिए दुश्मनी करते हुए जबरन मेरे मुख में माखन लगा दिया। बालक श्री कृष्ण माता यशोदा को समझाते हुए कहते हैं कि देखो मैया, माखन रखने का सिकहर कितना ऊंचा लटकाया हुआ है, मैं तो छोटा बालक हूं और तुम ही सोचो कि मैं अपने छोटे-छोटे हाथों से सिकहर से माखन कैसे चुरा सकता हूं। इतना कहते हुए कृष्ण बड़ी ही चतुराई से अपने मुख पर लगा माखन पोछ देते हैं और अपने दोनों हाथ एवं दोना पीठ के पीछे छुपा लेते हैं। बालक श्री कृष्ण की इन बाल सुलभ चेष्टाओं को देखकर माता यशोदा का जो भी क्रोध है वह वात्सल्य में बदल जाता है। वह तुरंत अपने हाथ की छड़ी फेंक कर मुस्कुरा उठती है और बालक श्री कृष्ण को प्रेम से गले लगा लेती है। इस प्रकार बालक श्री कृष्ण माता यशोदा को अपनी बाल लीला का सुख देखकर उनकी भक्ति का प्रताप दिखा देते हैं। वात्सल्य सम्राट सूरदास जी कहते हैं कि माता यशोदा को भगवान की लीला देखने का जो सुख प्राप्त हो रहा है उसे शंकर, ब्रम्हाजी भी प्राप्त नहीं कर सके है। 

काव्य सौंदर्य/ विशेष: 

1. इस पद में बाल सुलभ चेष्टाओं का जीवंत चित्र देखने को मिलता है। 

2. चोरी करते समय पकड़े जाने पर बालक किस प्रकार अपने आप को निर्दोष बताने का प्रयास करते हैं, इस पद उसका सार्थक चित्रण हुआ है। 

3. बालक कृष्ण और माता यशोदा के बीच के इस प्रेम-भाव से यह चित्र झलकता है कि बालक की चतुराई देखकर एक मां के हृदय को कितना सुख प्राप्त होता है। 

4. इस पद में कृष्ण की बाल लीलाओं वाक्पटुता और वात्सल्य से भरे मां यशोद के हृदय का अंकन मिलता है। 

5. यह ब्रज भाषा में रचित है। 6. यह भक्ति काल के कृष्ण भक्ति धारा का पद है। 


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