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मेरे राम का मुकुट भीग रहा है (Part- 1) | Mere Ram ka mukut bheeg raha hai | मेरे राम का मुकुट भीग रहा है निबंध में निबंध कार विद्यानिवास मिश्र क्या कहना चाहते हैं अपने शब्दों में लिखिए | विद्यानिवास मिश्र | WBCHSE 2022

मेरे राम का मुकुट भीग रहा है निबंध में निबंध कार विद्यानिवास मिश्र क्या कहना चाहते हैं अपने शब्दों में लिखिए।  या विद्यानिवास मिश्र के निबंध मेरे राम का मुकुट भीग रहा है का सारांश अपने शब्दों में लिखें। 'Mere Ram ka mukut bheeg raha hai' nibandh mein nibandhkar vidhayniwas mishra kya kehna chahte hain apane sabdon mein likhie ya vidhayniwas mishra ke nibandh 'mere ram ka mukut bhig raha hai' ka saransh apne shabdon mein likhen | मेरे राम का मुकुट भीग रहा है | Mere Ram ka mukut bheeg raha hai | 

मेरे नाम का मुकुट भीग रहा है निबंध में निबंध कार विद्यानिवास मिश्र क्या कहना चाहते हैं अपने शब्दों में लिखिए

उत्तर: विद्यानिवास मिश्र हिंदी के उत्तम निबंध कारों में अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। इनके निबंधों में जीवन के अनुभवों के साथ-साथ गंभीर चिंतन भी रहता है। ‘मेरे राम का मुकुट भीग रहा है’ विद्यानिवास मिश्र का एक उत्कृष्ट निबंध है जिसमें उन्होंने जीवन के अनुभवों के साथ-साथ गंभीर चिंतन की अभिव्यक्ति प्रस्तुत की है। 

            लेखक के मन की उद्विग्नता से निबंध का प्रारंभ होता है। वे इस बेचैनी, व्याकुलता और उदासी की वजह नहीं ढूंढ पाते हैं। ऐसी स्थिति में लेखक के पुत्र एवं मेहमान कृष्णा रात के संगीत समारोह में जाने की अनुमति मांगते हैं। लेखक उन्हें अनुमति नहीं देना चाहते हैं। किंतु बच्चों का मन रखने के लिए उन्हें अनुमति दे देते हैं और समय से घर लौट आने को कहते हैं। रात्रि के बारह बजने पर भी लौट कर ना आए तब लेखक के मन की उद्विग्नता और भी बढ़ गई। मौसम खराब हो गया और बारिश शुरू हो गई। ऐसे में लेखक के मन में कौशल्या के मन की व्यथा तरंगे लेने लगी जहां वे सोचती हैं कि मेरे राम का मुकुट भीग रहा होगा, लक्ष्मण का दुपट्टा भेज रहा होगा और सीता के मांग का सिंदूर भीग रहा होगा। यह प्रिय जनों के प्रति ममता का भाव देखकर लेखक कल्पना लोक में चले जाते हैं। रह-रह कर उनके मन में बच्चों के ना लौटने के कारण दुश्चिंता जागती है। लेखक को लगता है कि पूरे विश्व की कौशल्या है जो हर बारिश में अपने पुत्र की चिंता में व्यथित है। यहां व्यक्ति से अधिक उसके उत्कर्ष की चिंता की गई है। इसलिए मुकुट, दुपट्टा एवं सिंदूर की सुरक्षा की कामना की गई है। सुबह के चार बजे लौटने पर भी उन्हें लेखक के आंखों की वेदना का एहसास नहीं था। बिस्तर पर आकर कल्पना का तार फिर जुड़ गया और वे शब्दों के जंगल में फिर घिर गए। वे किसके हैं? या कौन उनका है? इस निबंध में लेखक यही कहना चाहते हैं कि हमारी संवेदना क्षिण हो गई है। अतः हमें परंपरागत विरासत को स्वीकार करते हुए अपने जीवन में उस संवेदना की तलाश करनी होगी।लेखक इस बात को स्वीकार करता है कि इस स्वतंत्र नयी पीढ़ी को बाँध कर रखना, हदो में रखना तथा पुराने ढर्रे पर चलाना सरल कार्य नहीं है। पुरानी पीढ़ी को उसकी चिंताओं से मुक्त कर देना या अलग कर देना भी संभव नहीं है। अतः इन दोनों पीढ़ियों के अंतर को पाट पाना तो दूर, समझ पाना तक लेखक के लिए कठिन हो रहा है। इन विचारों में डूबे हुए ही सुबह हो जाती है तथा लेखक अपने कुछ अंतिम प्रश्नो के साथ उदासी में लीन हो जाता है।

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2 Comments

  1. Jo Jo hindi me aarha sare chapter ke questions nd answers ke pdf daal do Ur English ka bhi
    Ho sake toh economics Ur BST ka bhi upload kro hindi me plzzzz sir

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  2. Asha nhi lga padh ke mujhe
    Es me bhut mistek hai spelling wrong hai

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