अकाल और उसके बाद कविता का भावार्थ व्याख्या | Aakal or Uske baad bhawarth vyakhya | Akaal or uske Baad| अकाल और उसके बाद : नागार्जुन| Nagarjun | Aakal or uske baad | Hindi Class 11 notes | WBCHSE
"कई दिनों तक चूल्हा रोया, चक्की रही उदास
कई दिनों तक कानी कुतिया सोई उनके पास
कई दिनों तक लगी भीत पर छिपकलियों की गश्त
कई दिनों तक चूहों की भी हालत रही शिकस्त। "
"Kai dino tak choolha roya, chakke rahee udaas
Kai dino tak kaani kutiya soi unke paas
Kai dino tak lage bheet par chhipakaliyon kai gasht
Kai dino tak choohon ki bhi haalat rahi shikast."
संदर्भ:
प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्य पुस्तिका हिंदी पाठ संचयन के अकाल और उसके बाद शीर्षक कविता से अवतरित है। इसके रचनाकार नागार्जुन जी हैं। यह कविता उनके काव्य संग्रह सतरंगे पंखों वाली में संकलित है।
प्रसंग:
प्रस्तुत काव्यांश में नागार्जुन ने अकाल के करुण दृश्य का चित्रण किया है। अकाल
के समय लोग अन्न के अभाव में मरने लगते हैं। इस भुखमरी से केवल मनुष्य ही नहीं
बल्कि घर के अन्य प्राणी भी प्रभावित होते हैं।
व्याख्या:
अकाल से पीड़ित घर का दृश्य प्रस्तुत करते हुए कवि नागार्जुन जी लिखते हैं कि अकाल
की स्थिति में घर में अनाज न रहने के कारण चूल्हे में आग तक नहीं जली। अनाज ना
रहने के कारण कई दिनों तक चक्की के चलने की आवाज भी नहीं सुनाई दी। घर का बचा-खुचा
भोजन खाने वाली कुत्तिया भी भोजन ना मिलने पर उनके पास भूखी ही पड़ी रही। घर की
दीवाल पर छिपकलियाँ भी कीड़े-मकोड़ों की तलाश में चक्कर लगाती रही। अकाल की स्थिति
में घर में अनाज नहीं था इसलिए घर में रहने वाले चूहों की भी हालत खराब हो गई। घर
में रहने वाले सभी प्राणियों को भूखा ही रहना पड़ा।
काव्य सौंदर्य/विशेष:
(i) प्रस्तुत
काव्यांश में अकाल ग्रस्त घर की अन्नविहीन अवस्था का करुण दृश्य प्रस्तुत किया गया
है।
(ii) घर में रहने वाले सभी प्राणियों को अकाल की स्थिति का सामना करना पड़ता
है।
(iii) इसमें जनसामान्य की भाषा का प्रयोग किया गया है।
(iv) यह मुक्तक छंद में रचित है। इसमे करुण रस है।
(ii) कवि जनवादी विचारधारा का पक्षधर है।
(v) इसमें पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार का प्रयोग किया गया है। संदर्भ: प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्य पुस्तिका हिंदी पाठ संचयन के अकाल और
उसके बाद शीर्षक कविता से अवतरित है।
इसके रचनाकार नागार्जुन जी हैं। यह कविता उनके काव्य संग्रह सतरंगे
पंखों वाली में संकलित है। प्रसंग: प्रस्तुत अंश में कविवर नागार्जुन ने अकाल के बाद का दृश्य प्रस्तुत किया है। अकाल
के बाद जब कहीं से अन्न के दानों का घर में आगमन होता है तो घर में रहने वाले
प्राणियों में एक नवीन जीवन का संचार होता है।
"दाने आए घर के अंदर कई दिनों के बाद
धुआँ उठा आँगन से ऊपर कई दिनों के बाद
चमक उठी घर भर की आँखें कई दिनों के बाद
कौए ने खुजलाई पाँखें कई दिनों के बाद।"
"Daane aae ghar ke andar kai dino ke baad
dhuaan utha aangan se upar kai dino ke baad
chamak uthi ghar bhar ke ankhen kai dino ke baad
kaue ne khujlae pankhen kai dino ke baad."
व्याख्या:
कवि नागार्जुन लिखते हैं कि भयंकर अकाल के उपरांत जब एक अकाल पीड़ित परिवार के घर में अनाज आता है तो चूल्हे में आग जलती है। बहुत दिनों के बाद आंगन के ऊपर उठता हुआ धुआँ दिखाई देता है। धुएँ को देख कर घर में रहने वाले सदस्यों के साथ-साथ कुत्तिया, छिपकलियो, चूहे सभी की आंखों में आशा की चमक दिखती है। धुएँ को देखने मात्र से ही कई दिनों से अन्न की तलाश कर रहा कौवा भी प्रसन्नता से अपने पंख खुजलाने लगता है।
काव्य सौंदर्य/ विशेष:
(i) प्रस्तुत काव्यांश में लंबी निराशा के बाद नवीन आशा का संचार देखने को मिलता है।
(iii) कई दिनों तक अन्न का अभाव झेलने के बाद थोड़ा सा भी अन्न किस प्रकार की
प्रशंसा देता है, इसके दर्शन इस काव्यांश में होते हैं।
(iv) यह शुद्ध खड़ी बोली हिंदी में रचित है।
(v) ‘चमक उठी घर भर की आंखें’ में मुहावरे का प्रयोग किया गया है।
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2 Comments
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